Free Download उत्सव टाईपोग्राफी एवं भारतीय क्लीप आर्टस
हमारे जीवन में अनेक खुशियों का अवसर आता है। इस
खुशियों के अवसर में हम सपरिवार, मित्रगण, सगा-संबंधी
सम्मिलित होकर खुशियां मनाते हैं। इस खुशियों के अवसर को हम उत्सव
(Utshav) के नाम
से जानते हैं। हमारे जीवन में अनेक उत्सव होते हैं। इनमें से प्रमुख उत्सव हैं:-
जन्मोउत्सव, शादी उत्सव। इन खुशियों के अवसर में सम्मिलित होने के लिए हमारे
समाज में लोगों को आमंत्रित करने की परम्परा है। इसके लिए बकायदा आमंत्रण कार्ड छापा
जाता है। इन कार्डों को आकर्षक बनाने के लिए ग्राफिक डिजाईनरों (Graphics
Designers) में
हमेशा कम्पीटिशन की भावना रहती है कि उसका
डिजाईन (Design) दूसरे डिजाइनरों के डिजाईन से ज्यादा आकर्षक हो।
और होगी क्यों न, क्योंकि उसी से उनको पहचान मिलती है।
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हमारे
देश मे ग्राफिक डिजाईनरों
(Graphics Designers) के सामने नये डिजाईन (New Design) तैयार करने के लिए हमेशा चुनौती बनी रहती है,
क्योकि हम ग्राफिक डिजाईन
में प्राय: हिन्दी फोन्टस (Hindi Fonts) का प्रयोग करते हैं। हिन्दी फोन्ट में अंग्रेजी फोन्ट (English Font) के मुकाबले विभिन्न डिजाईन एवं स्टाईल (Style) के टाईफेस
(Typeface) का अभाव रहता है। हिन्दी
में भी अंग्रेजी की भांति विभिन्न स्टाईल
(Style) के फोन्ट (font) बनाये जा सकते हैं। इसके लिए मैं अपना नया-नया प्रयोग कर,
अपना डिजाईन अपने ब्लाग के माध्यम आप लोगों के समक्ष रखता हूं।
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शुभ विवाह Typography |
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आर्शीवाद समारोह Typography |
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जन्मोत्सव Typography with pictures |
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Sagai Typography with clip arts |
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परिणयोत्सव Typography with pictures |
मैंनें अपने इस टाईपोग्राफी डिजाईन (Typography Design) में प्रत्येक शब्द के किसी एक अक्षर में Long Tail (लंबी पूंछ) का प्रयोग किया है साथ ही भारतीय परम्परागत क्लीप (Indian Traditional Clip Arts) आर्टस का प्रयोग किया है। क्लीप आर्टस (Clip Arts) प्रयोग करने कई कारण है। पहले तो यह डिजाईन (Design) को बहुत ही आकर्षक बनाता है, दूसरा कारण है कि एक चित्र (Picture) एक शब्द के अपेक्षा बहुत कुछ कह जाता है। जो लोग पढ़ने में अस्मर्थ होते हैं, वह चित्र देखकर पहचान लेते हैं कि वह कार्ड किस कार्यक्रम का है। हमारे पूर्वज, जिसे आदि मानव कहा जाता है, उनको पढ़ना लिखना नहीं आता था। उस समय किसी लिपि का भी अविष्कार नहीं हुआ था। उस समय ये लोग पत्थरों पर विभिन्न प्रकार के सिम्बालिक चित्र (पशु-पक्ष्ी, पेड़-पौधे) बनाकर एक-दूसरे से संवाद स्थापित करते थे, और उसी से लिपि का अविष्कार हुआ।
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