इतिहास के पन्‍नों में छत्‍तीसगढ़



प्राचीन काल में छत्‍तीसगढ़ नाम से छत्‍तीसगढ़ का उल्‍लेख नहीं मिलता। रामायण, महाभारत और पुराणों में छत्‍तीसगढ़ की जानकारी अधिक विस्‍तार से प्राप्‍त होती है। प्राचीन काल में छत्‍तीसगढ़ दक्षिण कोसल का एक हिस्‍सा था। दक्षिण कोसल के अंतर्गत छत्‍तीसगढ़ के मैंदानी भाग तथा उड़ीसा राज्‍य के कुछ हिस्‍से शामिल थे। इस क्षेत्र का उल्‍लेख रामायण तथा महाभारत में भी मिलता है। प्राचीन ग्रंथों में छत्‍तीसगढ़ को महाकान्‍तार तथा दण्‍डकारण्‍य प्रदेश कहा गया है, जो आज का बस्‍तर क्षेत्र है। छठवीं तथा बारहवीं शताब्‍दी के मध्‍य शरभरीय, पाण्‍डुवंशीय और सोमवंशी शासकों ने इस क्षेत्र पर शासन किया। तत्पश्‍चात् यह क्षेत्र कल्‍चुरियों, मराठों के अधीन रहा।

Chhattisgarh: History
Chhattisgarh: History  
रामायण काल में छत्‍तीसगढ़ के गौरवशाली इतिहास के अनेक उदाहरण मिलते हैं। कौशितिक उपनिषद में विंध्‍य पर्वत का उल्‍लेख मिलता है। वैदिक साहित्‍य में नर्मदा नदी का उल्‍लेख रेवा के रूप में मिलता है। महाकव्‍य रामायण के अनुसार दक्षिण कोसल नरेश राजा भानुमन्‍त की पुत्री कौशिल्‍या का विवाह उत्‍तर कोसल के नरेश दशरथ से हुआ था। भगवान श्रीराम ने वनवास की लंबी अवधि के दौरान अधिकांश समय दण्‍डकारण्‍य
प्रदेश में व्‍यतीत किया, जो वर्तमान में बस्‍तर क्षेत्र कहलाता है। जनश्रुति के अनुसार शिवरीनारायण, खरौद आदि स्‍थान रामायण काल से संबंधित माने जाते हैं। शिवरीनारायण में शबरी ने अपने आराध्‍य प्रभु श्रीराम को झूठे बेर खिलाकर मंत्रमुग्‍ध कर दिये थे। शिवरीनारायण के साथ ही खरौद का रामकथा से सम्‍बंध माना जाता है। रावण वध किये जाने के पश्‍चात श्रीराम द्वारा सीता का त्‍याग किये जाने के पश्‍चात माता सीता को महर्षि बाल्‍मीकि
ने अपने तुरतुरिया स्थित आश्रम में आश्रय दिया था।  इसी स्‍थान पर लव और कुश का जन्‍म हुआ। राम के पश्‍चात् उत्‍तर कोसल का राज्‍य उनके बड़े पुत्र लव तथा दक्षिण कोसल का राज्‍य छोटे पुत्र कुश को मिला। इस कारण दक्षिण कोसल की राजधानी श्रावस्‍ती को कुश के नाम पर कुशस्‍थली के नाम से जाना जाता है।
महाभारत काल में भी छत्‍तीसगढ़ प्रांत का उल्‍लेख मिलता है। महाकवि वेदव्‍यास ने इस प्रांत को को प्राक् कोसल कहा है। इसके द्वारा बस्‍तर के अरण्‍य क्षेत्र को कान्‍तार कहा है। कर्ण द्वारा की गई दिग्विजय में भी कोशल जनपद का नाम उल्‍लेख है। महाभारतकालीन ऋषभ तीर्थ की पहचान शक्ति के निकट गुंजी नाम स्‍थान से की जाती है। उस समय वर्तमान रतनपुर को मणिपुर कहा जाता था। मोरजध्‍वज मणिपुर का शासक था। अर्जून के पुत्र बभ्रुवाहन की राजधानी चित्रांगपुर वर्तमान में सिरपुर के नाम से जाना जाता है।
अवदान शतक नाम ग्रंथ के अनुसार महात्‍मा बुध्‍द दक्षिण कोसल आए थे यहां लगभग तीन माह तक प्रवास किए। ऐसी जानकारी बौद्ध यात्री व्‍हेनसांग के यात्रा वृतांत ''सी-यू-की'' से मिलता है। दक्षिण कोशल वर्तमान छत्‍तीसगढ़ में स्थित था। दक्षिण कोसल का क्षेत्र संभवत: नन्‍द मौर्य सम्राज्‍य का अंग था, इसकी जानकारी भी व्‍हेनसांग की यात्रा विवरण से मिलता है। मौर्यकाल के कुछ सिक्‍के अकलतरा, ठठारी, बार एवं बिलासपुर से प्राप्‍त हुए हैं। इसी काल के पुरात्विक स्‍थल सरगुजा जिले के रामगढ़ के निकट जोगीमारा और सीताबेंगरा नामक गुफाएं हैं। रामगढ़ की पहाड़ी में स्थित सीताबेंगरा गुफा विश्‍व की प्राचीनतम नाट्यशाला मानी जाती है ।
सातवाहन राज्‍य की स्‍थापना मौर्य समाज के पतन के बाद हुई थी। दक्षिण कोशल का अधिकांश भाग सातवाहनों के प्रभाव क्षेत्र में था। सातवाहन राजा अपीलक की एकमात्र मुद्रा रायगढ़ के निकट बालपुर नामक गांव से प्राप्‍त हुई है। ऐसा माना जाता है कि प्रथम सदी में नागार्जुन छत्‍तीसगढ़ आया था। ह्वेनसांगन ने लिखा है कि दक्षिण कोशल की राजधानी के निकट एक पर्वत पर सातवाहन राजा ने एक सुरंग खुदवाकर प्रसिद्ध बौद्ध भिक्षु नागार्जुन के लिए एक पांच मंजिला भव्‍य संघाराम बनवाया था। कालांतर में यहां मेघ, वाकाटक, गुप्‍त, राजर्षितुल्‍य, पर्वतद्वारक, नल, शरभ्‍पुरीय, पांडू, सोम, मेकल का पांडव तथा बाणवंश ने शासन किया।
सन् 550 से 1740 तक लगभग 1200 वर्षों तक कलचुरी राजाओं ने उत्‍तर तथा दक्षिण भारत के किसी न किसी प्रदेश में राज्‍य करते रहे। शायद ही किसी अन्‍य राजवंश ने इतने लम्बे समय तक राज्‍य किया हो। छत्‍तीसगढ़ में कल्‍चुरी राजवंश की स्‍थापना लगभग 1000 ई. में कलिंगराज द्वारा की गई। कल्‍चुरियों ने 18वीं  सदी तक राज्‍य किया। सबसे पहले कल्‍चुरियों ने बिलासपुर के तुम्‍मान को अपनी राजधानी बनाया। फिर आगे चलकर रतनपुर और रायपुर कल्‍चुरियों की राजधानी रही। कलचुरी नरेशों ने यहां सबसे लंबे समय तक शासन किया। कलचुरी नरेश रत्‍नदेव ने लगभग 1050 ई. में रत्‍नपुर नामक नगर की स्‍थापना की और राजधानी तुम्‍मान से यहां स्‍थानांरित की। राजा रत्‍नदेव ने नई राजधानी रत्‍नपुर (रतनपुर) में अनेक मंदिरों एवं तालाबों का निर्माण कराया। यहां के प्रसिद्ध महामाया मंदिर का निर्माण इन्‍ही के द्वारा कराया गया। रतनपुर की तुलना कुबेरपुर से की जाती थी। जाजल्‍लदेव प्रथम (सन् 1095 से 1120 ई.) रतनपुर के राजाओं में सर्वाधिक प्रतापी थे। जाजल्‍लदेव प्रथम के द्वारा जाजल्‍यपुर नामक नगर की स्‍थापना की, जो आज जांजगीर के नाम से जाना जाता है।
रतनपुर की एक शाखा लगभग 14वीं शताब्‍दी में रायपुर में स्‍थापित हुई। दक्षिण कोसल में जब कलचुरियों का शासनकाल था, उस समय बस्‍तर में छिंदक नागवंश का शासन था। सन् 1741 में मराठों द्वारा छत्‍तीसगढ़ पर आक्रमण हुआ और 1758 ई. में छत्‍तीसगढ़ से कल्‍चुरियों की सत्‍ता समाप्‍त हो गई।

मराठों का शासन कलचुरियों की सत्‍ता समाप्‍त होने के बाद शुरू हुआ। सन् 1830 से 1854 के बीच नागपुर और छत्‍तीसगढ़ पुन: मराठों के नियंत्रण में आ गया। 27 नवम्‍बर सन् 1817 में नागपुर में अंग्रेजों के बीच युद्ध हुए, जिसमें मराठों की पराजय हुई और यह क्षेत्र अंग्रेजों के नियंत्रण में आ गया। सन् 1818 से 1830 तक अंग्रेजों ने कैप्‍टन एडमंड के नियंत्रण में छत्‍तीसगढ़ का शासन संभाला। अंग्रेजी हुकुमत के खिलाफ छत्‍तीसगढ़ में भी जगह-जगह विरोध हुआ। 
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