छत्तीसगढ़ के ऐतिहासिक एवं पुरातात्विक स्थल
छत्तीसगढ़ में अनेक एतेहासिक एवं पुरातत्विक स्थल है, जो पर्यटन की दृष्टि से काफी महत्वपूर्ण है। ये छत्तीसगढ़ के गौरवशाली इतिहास को बयां करते हैं। यहां सिरपुर नामक स्थान हैं जहां भगवान बुध्द आये थे तथा सम्राट अशोक ने स्तूप भी बनवाया था। डीपाडीह नाम स्थान पर खुदाई करने से अनेक मंदिर प्राप्त हुए हैं। इस स्थान से शाक्य एवं शैव समुदाय के पुरातत्वि अवशेष प्राप्त हुए हैं। यहां भोरमदेव नामक मंदिर हैं, जिसकी समानता के खजुराहो के मंदिर से की जाती हैं। मल्हार में ताम्रकाल से लेकर मध्यकाल तक का क्रमबध्द इतिहास प्राप्त हुआ है। देवबलौदा दुर्ग में प्राचीन शिव मंदिर है। तालागांव में देवरानी – जेठानी मंदिर है जो गुत्पकाल की स्थाप्य कला का बोध कराती है। बारसूर नामक स्थान विशालकाय गणेश प्रतिमा के लिए जानी जाती हैं। यहां छिंदक नागवंशी का शासन रहा है। आओं इन सभी सथानों के बारे में जानें।
सिरपुर (समृध्दि की नगरी)
सिरपुर
का प्राचीन नाम श्रीपुर है, जिसका अर्थ होता है समृध्दि की नगरी। सिरपुर को
चित्रांगपुर भी कहा करते थे। महाभारत काल में
सिरपुर अर्जून के पुत्र भब्रुवाहन की राजधानी थी, जिसको मणिपुर के नाम से जाना जाता था। बौध्द ग्रंथ के अनुसार भगवान बुध्द यहां आए थे। यहां सम्राट अशोक द्वारा स्तूप भी बनाया गया था।
सिरपुर अर्जून के पुत्र भब्रुवाहन की राजधानी थी, जिसको मणिपुर के नाम से जाना जाता था। बौध्द ग्रंथ के अनुसार भगवान बुध्द यहां आए थे। यहां सम्राट अशोक द्वारा स्तूप भी बनाया गया था।
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सिरपुर (समृध्दि की नगरी) |
सिरपुर
महासमुंद जिले में स्थित है, जो कि महानदी के पूर्वी तट पर स्थित है। यह राष्ट्रीय
राजमार्ग क्र. 06 पर आरंग के बाद आगे की ओर 40 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।
सिरपुर प्राचीन समय में दक्षिण कौशल की राजधानी रही है। सिरपुर पाण्डुवंशी, सोमवंशी एवं शरभपुरीय
सम्राटों की राजधानी भी रही है। सन 639 ई. में चीनी यात्री ने सिरपुर की यात्रा की
थी।
सिरपुर
में महाशिवरात्रि पर मेला लगता है। छत्तीसगढ़ शासन द्वारा बुध्दि पूर्णिमा के दिन
सिरपुर महोत्सव का आयोजन किया जाता है। सिरपुर के दर्शनीय स्थलों में लाल ईंटो
से निर्मित लक्ष्मण मंदिर सर्वाधिक प्रसिध्द है। इस मंदिर का निर्माण महारानी
वासटा ने अपने पति हर्ष गुप्त की याद में कराया था। यह मूल रूप से विष्णु मंदिर
है। अभिलेख के अनुसार इस मंदिर का निर्माण 650 ई. के आसपास है। मंदिर के गर्भ गृह
में लक्ष्मण एवं शेष नाग सांप की पत्थर की प्रतिमा है। इसी कारण इस मंदिर को
लक्षमण मंदिर कहा जाता होगा। इस मंदिर की दीवारों में जमीन से लगभग 50 फीट की
उंचाई पर विभिन्न हिन्दू देवी देवताओं, किन्नरों, यक्ष, पशुओं एवं पुष्पों की सुंदर कलाकृतियां बनी हुई है।
ईंटों पर किसी भी प्रकार का प्लास्टर नहीं के बावजूद भी इसका सौंदर्य पर्यटकों
का मन मोह लेती है। लक्षमण मंदिर के
अतिरिक्त यहां राम मंदिर, गंधेश्वर महादेव मंदिर, एवं संग्राहलय आदि दर्शनीय है।
गंधेश्वर महादेव मंदिर का जीर्णोध्दार चिमन जी भोसला ने कराया था। इस मंदिर के
प्रांगन में विभिन्न धर्म भगवान बुध्द, जैन मूर्ति, नटराज, विष्णु मंदिर,
महिसासुर मदिर्नी की मूर्तियां है। सिरपुर महायान, जैन एवं बौध्द धर्म का बहुत
बड़ा केन्द्र रहा है। यहां विभिन्न बौध्द स्मारक है, जिनमें से स्वातिक
विहार, प्रभुकुटी विहार, तीवरदेव आदि उल्लेखनीय है।
डीपाडीह
डीपाडीह
छत्तीसगढ़ राज़्य बलरामपुर जिले में स्थित है। जो अंबिकापुर से 73 किलोमीटर की
दूरी पर स्थित है। यहां कभी सामनी सिंह
नाम का द्रविड़ राजा का शासनकाल था। यहां लगभग 6 किलोमीटर के दायरे में प्राचीन
भग्न मंदिरों के अवशेष टीलों के रूप में विद़यमान है। यहां दर्शनीय स्थलों में
प्रमुख रूप से सामत झरना, रानी पोखर, चामुण्डा मंदिर, पंचायतन मंदिर। यहां खनन
कार्य होने के कारण अनेक मंदिर मिले हैं, जिसमें अधिकांश शिव मंदिर है। सामत झरना
का शिव मंदिर इन मंदिरों में सबसे बड़ा एवं भव्य है।
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डीपाडीह |
यहां
पर चईता पहाड़ पर डीपाडीह के स्मारकों के लिए स्थाप्य खण्ड को कांटकर मंदिर
हेतु प्रयोग किया गया है। इस पहाड़ में एक प्राचीन अभिलेख भी प्राप्त हुआ है, जिस
पर नागरी लिपी में ‘ओम नमो विश्कर्माय’ अंकित है।
भोरमदेव मंदिर ( छत्तीसगढ़ का खजुराहो)
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भोरमदेव (छत्तीसगढ़ का खजुराहो) |
भोरमदेव
में मड़वा महल एवं छेरका महल भी स्थित है, जो दर्शनीय है। मड़वा महल का निर्माण
विवाह सम्पन्न कराने के लिए किया था, इस कारण मड़वा महल को दूल्हा देव भी कहते
हैं। ऐसी मान्यता है इस स्थान पर नागवंशी राजा ने हैहयवंशी राजकुमारी से विवाह
किया था। मड़वा महल का निर्माण नागवंशी राजा रामचन्द्र ने 1349 ई. में किया था। मड़वा
महल के पास छेरका महल स्थित है। छेरका अर्थ होता है छेरी अर्थात बकरी। इस मंदिर के
आसपास से बकरी की गंध आती है, इस कारण इस महल को छेरका महल कहा जाता है। यहां
प्रतिवर्ष छत्तीसगढ़ शासन द्वारा भोरमदेव महोत्सव का आयोजन किया जाता है।
मल्हार
मल्हार बिलासपुर
जिले में स्थित है। यह एक ऐतिहासिक महत्व का एक ग्राम है। यह बिलासपुर जिला मुख्यालय
से 32 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है एवं मस्तुरी तहसील से 14 किलीमीटर की दूरी पर
स्थित है। भारत के 52 सिध्द शक्तिपीठों में से 51 शक्तिपीठ मल्हार में स्थापित
है। यहां पर ताम्रकाल से लेकर मध्यकाल तक का क्रमबध्द इतिहास प्राप्त हुआ है। खुदाई
से यहां मौर्यकाल की ईटों की दीवारें प्राप्त हुई है। यहां से रोमन सिक्कें
प्राप्त हुई है, जिससे यह पता चलता है कि इस क्षेत्र में विदेशी व्यापार होता
था। इस स्थान की खुदाई से ईसा की दूसरी सदी की ब्राम्ही लिपि में लिखित मिटटी की
मुहरें प्राप्त हुई है, जिस पर ‘गामस कोसलिया’ (कोसली ग्राम) एवं वेद श्री लिखा
हुआ है। कल्चुरी राजा पृथ्वीदेव द्वितीय के शिलालेख में इसका प्राचीन नाम मल्लाल
रखा है। दूसरे शिलालेखों में इसका नाम मल्लालपत्तन है। यह अरपा, लीलागर एवं
शिवनाथ नदियों से घिरा हुआ है
।
यहां दर्शनीय स्थलों
में प्रमुख रूप से उत्खनन से प्राप्त पातालेश्वर मंदिर, देउरी मंदिर एवं
डिंडेश्वरी मंदिर आदि है। इनमें डिंडेश्वरी मंदिर बहुत ही ज्यादा प्रसिध्द है।
1954 ई. में इस मंदिर का जीर्णोध्दार किया गया था। इस मंदिर में शुध्द ग्रेनाईट
से निर्मित डिंडेंश्वरी देवी की प्रतिमा है, जो मूर्तिकला का सर्वोत्तम नमूना
है। यहां सर्वाधिक प्राचीन चतुर्भुज विष्णु की प्रतिमा है। इस प्रतिमा में
मौर्यकालीन ब्राम्ही लेख अंकित है। जिसका निर्माण 200 ई.पू. हुआ है। यहां एक
संग्राहलय भी है जिसमें जैन तथा वैष्णव एवं शैव सम्प्रदाय की मूर्तियां रखी हुई
है। यहां बुध्द बोधिसत्व मंजूरी, तारा जैसी अनेक बौध्द प्रतिमाएं है। यहां जैन
तीर्थकारों, यक्ष-यक्षिणाओं की प्रतिमाएं भी मौजूद है। यहां 10 वीं शताब्दी से
लेकर 13 वीं शताब्दी तक के समय में अनके शिव मंदिरों का निर्माण हुआ है। यहां
1167 ई. में निर्मित केदारेश्वर मंदिर (पातालेश्वर मंदिर) अति महत्वपूर्ण है।
इसका निर्माण राजा सोमराज नाम के एक ब्राम्हण द्वारा किया गया।
देव बलौदा (प्राचीन शिव मंदिर)
देवबलौदा
दुर्ग जिले में स्थित है। इसकी दूरी जिला मुख्यालय से 14 मील तथा भिलाई रेलवे स्टेशन
से 2 मील की दूरी पर स्थित है। यहां प्राचीन शिव मंदिर स्थित है। यह मंदिर भग्न
है। इस मंदिर में विभिन्न प्रकार की मूर्तियां स्थापित है, जिसमें विभिन्न
प्रसंग करते हुए दिखाया गया है। यहां मंदिर की दीवारों पर रीछ (बंदर) की आकृति उत्कीर्ण
है। यहां एक स्थान पर रीछ का शिकार करते हुए दिखाया गया है। मंदिर के अंदर चारो
स्तम्भों में विभिन्न मूर्तियां उत्कीर्ण है। मंदिर के दरवाजे के बाहर गणेश जी
एवं मां सरस्वती की मूर्तियां विद्यमान है।
तालागांव (देवरानी-जेठानी मंदिर)
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तालागांव |
देवरानी मंदिर के
मुख्य द्वार पर रूद्र शिव कालपुरूष की 1500 वर्ष पुरानी प्रतिमा है। इस रूद्र शिव
की प्रतिमा में 11 अंग विभिन्न प्रकार के जीव-जन्तुओं की मुख वाली है। यह मूर्ति
पांचवी छटवीं शताब्दी में शरभपुरीय राजाओं के समय बनाई गई थी। यहां जलेश्वर
महादेव का भी मंदिर है। इन स्थाप्य प्रतिमाओं से पता चलता है कि यह स्थान
विभिन्न संस्कृतियों की धर्मस्थली रही है, जो शैव उपासक थे।
बारसूर
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बारसूर (गणेश प्रतिमा) |
यहां
गणेश जी की विशालकाय प्रतिमा काफी प्रसिध्द है। इसके अतिरिक्त यहां मामा-भांजा
मंदिर स्थित है। यह मंदिर नागर शैली में निर्मित है। यहां इसके अतिरिकत दर्शनीय स्थलों
में बत्तीसा मंदिर, चन्द्रादित्य मंदिर भी स्थित है। इन मंदिरों की मूर्तियां
तथा मंदिर स्थाप्य कला के उदाहरण है।