छत्तीसगढ़ का धार्मिक एवं पौराणिक स्थान
छत्तीसगढ़ में अनेक धार्मिक स्थान
हैं। जिनका नाता धर्म एवं पुरान से रहा है। भगवान श्री राम ने वनवास के दौरान लंबे
समय तक दण्डकारण्य में व्यतीत किया था एवं शिवरीनारायण में सबरी के झूठे बेर
खाये थे। आरंग में अनेक मंदिर हैं, जिसका जिक्र पुरानों में मिलता है, जो लोगों का
धार्मिक आस्था एवं श्रध्दा का प्रतीक है। खरौद में लक्ष्मेण्श्वर मंदिर हैं,
लोगों की मान्यताओं के अनुसार लक्ष्मण ने यहां तपस्या की थी। महानदी, पैरी तथा
सौंढूर नदी के संगम पर स्थित राजिम छत्तीसगढ़ का प्रयाग एवं तीर्थ स्थल कहलाता
है। छत्तीसगढ़ के इन स्थानों के बारे में संक्षेप में जानें।
शिवरीनारायण- धार्मिक एवं पौराणिक स्थान
शिवरीनारायण छत्तीसगढ़ के जांजगिर जिले में स्थित है, जो कि महानदी के तट पर बसा हुआ है। यह धार्मिक एवं
पौराणिक महत्व का स्थान है। इस स्थान से कुछ दूर
पर महानदी- जों नदी तथा शिवनाथ – महानदी का संगम स्थित है। इस क्षेत्र को नारायण क्षेत्र भी कहा जाता है। पौराणिक दंत कथाओं के अनुसार भगवान श्रीराम 14 वर्ष के बनवास के दौरान यहां आए थे तथा शबरी के झूठे बेर खाये थे। सबरी के इसी नाम पर इस जगह का नाम शिवरीनारायाण पड़ा था।
पर महानदी- जों नदी तथा शिवनाथ – महानदी का संगम स्थित है। इस क्षेत्र को नारायण क्षेत्र भी कहा जाता है। पौराणिक दंत कथाओं के अनुसार भगवान श्रीराम 14 वर्ष के बनवास के दौरान यहां आए थे तथा शबरी के झूठे बेर खाये थे। सबरी के इसी नाम पर इस जगह का नाम शिवरीनारायाण पड़ा था।
![]() |
शिवरीनारायण |
यहां दर्शनीय स्थलों में नर- नारायण मंदिर
प्रमुख रूप से प्रसिध्द है। यहां छोटे- छोटे बहुत सारे प्राचीन मंदिर है। नर
नारायण मंदिर लगभग 2000 साला पुराना है। इसका निर्माण राजा शबर ने करवाया था। यहां
केशव नारायाण मंदिर भी स्थित है। इस मंदिर में भगवान विष्णु जी की बहुत ही
प्राचीन मूर्ति है। यह मंदिर नर नारायण मंदिर के ठीक सामने स्थित है।
यहां जगन्नाथ मंदिर भी बहुत ही प्रसिध्द
है, जिसका निर्माण सन 1927 ई. में हुआ था। एक मान्यता के अनुसार प्रत्येक वर्ष
भगवान जगन्नाथ माघ पूर्णिमा के दिन यहां आते हैं। यहां पर चन्द्रचूड़ महादेव का
मंदिर भी स्थित है। इस मंदिर का निर्माण कवि कुमार पाल ने करवाया था।
शिवरीनारायण में हर साल माघ पूर्णिमा पर
मेला लगता है। प्राचीन मान्यताओं के अनुसार माघ पूर्णिमा के दिन भगवान जगन्नाथ
जी महाराज शिवरीनारायण आते हैं। इस कारण से इस दिन जगन्नाथपुरी के दरवाजे बंद रखे
जाते हैं।
आरंग (मंदिरों की नगरी )
![]() |
आरंग : भांडलदेव मंदिर |
आरंग, रायपुर से सम्बलपुर जाने वाले राष्ट्रीय राजमार्ग क्र. 06 पर
स्थित है। यह रायपुर से 36 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यह एक प्राचीन नगरी है।
यहां एतेहासिक तथा पुरात्विक महत्व के अनेक मंदिर स्थित है। इस कारण इस नगर को
मंदिरों की नगरी कहा जाता है। आरंग का जिक्र पुरानों में भी मिलता है।
यहां के दर्शनीय स्थलों में भांडलदेव मंदिर, बाघलदेव मंदिर, महामाया
मंदिर, पंचमुखी महामदेव मंदिर, हनुमान मंदिर आदि हैं। भांडलदेव मंदिर का निर्माण
12 वीं शताब्दी में हुआ है। इसमें जैन तीर्थकारों में नेमीनाथ और अजीतनाथ का
श्रेष्ठ मूर्तियां है। इस मंदिर में भाई-बहन एक साथ प्रवेश नहीं कर सकते।
खरौद (छत्तीसगढ की कांशी )
![]() |
खरौद : छत्तीसगढ़ की काशी |
खरौद जांजगिर चांपा जिले
में स्थित है। यह शिवरीनारायण से 3 किलोमीटर की दूरी पर उत्तर पश्चिम में स्थित
है। यह महानदी के तट पर स्थित है। खरौद का प्राचीन नाम इन्द्रपुर था। खरौद
पौराणिक तथा एवं ऐतिहासिक विशेष्ताओं से परिपूर्ण है।
यहां दर्शनीय स्थलों में लक्ष्मेश्वर शिव मंदिर प्रसिध्द है। इस
छत्तीसगढ़ का कांशी कहा जाता है। संभवत: लक्ष्मण ने इस स्थान पर तपस्या की थी,
इस कारण इसका नाम लक्षलिंग पड़ा। लक्ष्मणेश्र मंदिर सोमवंशी राजाओं द्वारा बनाया
गया है। यहां शिवरात्रि के समय मेला लगता है।
राजिम ( छत्तीसगढ़ का प्रयाग )
राजिम गरियाबंद जिले में स्थित है। यह छत्तीसगढ़
की राजधानी रायपुर से 48 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। राजिम महानदी, पैरी तथा
सौंढूर नदी के संगम पर बसा हुआ है। राजिम प्राचीन समय से ही छत्तीसगढ़ का प्रमुख
सांस्क़तिक केन्द्र रहा है। राजिम को छत्तीसगढ़ का प्रयाग कहा जाता है। इसे छत्तीसगढ़
का महातीर्थ एवं संस्कारधानी भी कहा जाता है।
![]() |
राजिम : छत्तीसगढ़ का प्रयाग |
राजिम का प्राचीन नाम पदपुर या कमल क्षेत्र
था। यहां के प्रमुख मंदिरों में राजीव लोचन मंदिर सर्वाधिक प्रसिध्द है। राजीव
लोचन मंदिर का निर्माण नल वंश के सम्राट विलासतुंग ने कराया था, बाद में इस मंदिर
का जीर्णोध्दार रतनपुर राज्य के सामंत जगतपाल ने कराया था। ऐसी प्राचीन मान्यता
है कि जगन्नाथपुरी की यात्रा तब तक सफल नहीं मानी जाती है जब तक राजिम की यात्रा
नहीं कर ली जाती है। राजिम लोचन मंदिर सातवीं सदी में ईंटों से निर्मित है। इसके
गर्भगृह में काला पत्थर से निर्माण हुआ भगवान श्री विष्णु की प्रतिमा है।
यहां कुलेश्वर महोदव का भी मंदिर है, जो
महानदी, सोंढूर तथा पैरी नदी के संगम में स्थित है। यह मंदिर बहुत राजिम का बहुत
ही प्रसिध्द मंदिर है। इस मंदिर के अतिरिक्त यहां कई मंदिरें है जो दर्शनीय है।
उनमें से हैं- राजेश्वर मंदिर, दानेश्वर मंदिर, रामचन्द्र मंदिर, पंचेश्वर
महादेव, राजिम तेलीन का मंदिर, सोमेश्वर महादेव का मंदिर आदि।
राजिम में माघ पूर्णिमा से लेकर महाशिवरात्रि तक विशाल मेला लगता है।
इस मेलें में हजारों की संख्या में लोग दर्शन करने आते हैं। यहां त्रिवेणी संगम
पर लोग स्नान करतें है। यहां विभिन्न राज्यों से साधु संतों तथा नागा बाबाओं का
आगमन होता है। यहां अखाड़ा का कार्यक्रम भी होता है। यहां साधु संतों द्वारा सत्संग
प्रवचन दिया जाता है। यज्ञ किया जाता है। राजिम मेला छत्तीगसढ़ का सबसे बड़ा मेला
है, यह मेला राजिम मेला के नाम से जाना जाता है। छत्तीसगढ़ सरकार ने राजिम मेले
को पांचवें कुंभ की संज्ञा दी है। यह राजिम कुंभ के नाम से जाना जाता है।